वो गिरने नही देगी ये विश्वाश होता है,
जब हवा में बच्चे को उछालती है माँ ।
उसकी आंखों ने कभी धोखा नही खाया,
छुप छुप के मेरा रोना भी पहचानती है माँ ।
ना जाने कहा से डिग्रीयां पायी है उसने,
चावल में देर है कितना माँ की अंगुलिया बताती है
सूरज की रोशनी की चमक बढ़ सी जाती है,
सज सवंर के घर से जब निकलती है माँ
कभी कभी हमारी हंसी भी उसके आंसू के दरमियां होती है,
फिर भी वो हंस के मिलती है, क्योंकि वो माँ होती है ।
लज़ीज़ खानों में भी वैसा लज़्ज़त नही पाया,
बचपन मे जैसा माँ ने खिलाया था निवाला ।
ईश्वर ने एक ऐसा उपहार दे दिया,
माँ के रूप में मुझे उसका प्यार दे दिया,
हम तो सिमट के रह गए उसके ममता के आंचल में,
प्रकृति ने अजब से सरोकार दे दिया ।
प्रशान्त श्रीवास्तव