Dear Neha this Poem dedicated for you.
अच्छी लगती हैं, वो बचपन की दोस्त,
जो बड़े होने पर भी साथ निभाती हैं,
जब साथ बैठकर बातें करते थे घंटों,
अब कुछ नया हो तो, वो मोबाइल से बताती हैं,
अच्छी लगती…………
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कभी वो परेशान होती हैं कभी मैं उदास होती हूं,
मैं उसकी उलझन सुलझती हूं,
वो मेरी उदासी भगाती हैं,
अच्छी लगती…………
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हम साथ नहीं रहते, हम पास नहीं रहते,
फिर भी ऐसा रिश्ता है हमारा,
वो फोन कर देती हैं जब मुझे उसकी याद आती हैं,
अच्छी लगती……i
By- Harshita Srivastava